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Jay Sarana jay sanatan Dharma: उराँव सरना धर्म कुछ मुख्य विशेषता - धर्म के पुजारी और उनके कार्यो का बँटवारा

Jay Sarana Jay santan उराँव सरना धर्म जय सरना जय सनातन।

आज हम सरना धर्म के बारे मैं जानकारी देने वाले हैं। सरना धर्म के बारे मैं लोगो के पास बहुत कम जानकारी होती हैं। हम सरना धर्म के कुछ मुख्य विशेषता के बारे मे बताएंगे। इसके अगले पोस्ट मैं और भी नई जानकारी देने की कोशिश करूंगा।


धर्म के पुजारी और उनके कार्यो का बँटवारा- 


पहान उराँव सरना समाज का धर्मगुरु और भगवान तथा गाँव के देवी- देवताओं का पुजारी है। इनके ही जिम्मे गाँव के देवी-देवताओं के पूजा-पाठ का दायित्व रहता है । पहान का दूसरा नाम बैगा भी है यह नागपुरिया और बिरजिया भाषा में है। उराँव भाषा में पहान को नैगस कहा जाता है। इनके दो या तीन सहायक होते हैं जो पुजार, पनभरा और सुसार कहलाते हैं । ये पूजा-पाठ और सामाजिक कार्यों के सम्पादन में पहान की सहायता करते हैं जिस प्रकार हिन्दू धर्म के पूजा-पाठ में ठाकुर ब्राह्मण की सहायता करता है। उराँव सरना परिवार का कर्ता या बूढ़ा-बुजुर्ग या घर का सबसे बड़ा सदस्य जिनको पूजा-पाठ की जानकारी है, घर परिवार के देवी-देवताओं और भगवान का पुजारी होता है, क्योंकि पर्व-त्योहारों में पहान सभों के घरों में नहीं जा सकता है | किसी-किसी परिवार में मनौती देव-भूत भी होते हैं। इनकी पूजा-पाठ घर के ही लोग करते हैं। 


पर्व-त्योहारों में पूजन-स्थल को गोबर से लिपना।


पर्व-त्योहारों में पूजन-स्थल को गोबरों से लीपकर पूरब मुँह करके पुजारी सर्व प्रथम पकाये गये तीन शुद्ध रोटियों को तीन-तीन टुकड़े करके उत्तर से दक्षिण रखे तीन सखुए के पत्तों में दक्षिण से उत्तर की ओर अर्थात् दाहिने से बायें एक-एक करके तीन बार गिराता है, उसी प्रकार शुद्ध हँड़िया पानी को भी तपावन देता है। कहीं-कहीं या किसी-किसी विशेष क्षेत्रों में पुजारी सर्व प्रथम बीच के पत्ते में गिराता है उसके बाद बायें-दायें भोग चढ़ाता है। धूप-धुवन अगरबत्ती और सुगंन्धित चीजों को जला कर भगवान, देवी-देवताओं और पूर्वजों का नाम लेकर नतमस्तक होता है । त्योहारों के शुभ अवसरों पर घर में खुशियाली की याचना करता है । विशेष अवसरों में पहान की जगह, घर के बूढ़े-बुजुर्ग भी लेते हैं। पूजा-पाठ के समय भगवान और पूर्वजों से दुवा लेना जरूरी हो जाता है। 



१, पहान पुजारी और उनके कार्य - 

पहान का मुख्य कार्य देवी-देवताओं का पूजा-पाठ करना तथा बाहर से आये भूत-प्रेतों के आक्रमणों को भगवान के पास प्रार्थना करके शांत करना है। इन्हें गाँव की खुशियाली अन्न-धन और वर्षा पानी के लिए दुवा माँगना भी है। पर्व-त्योहारों के समय वह धार्मिक और सामाजिक कार्यों को निभाता है। शादी-ब्याह के पूजा-पाठ में पहान भाग लेता है। कहीं-कहीं पहान उराँव शादी भी कराता है। 


२, पुजार - 

पूजा-पाठ के कार्यों में पहान का पुजार सहायता करता है। गाँव के सामूहिक पूजा-पाठ के लिए पुजार ही पूजा की सामग्रियों को एकत्रित करता है । वह मुर्गा-अरवा चावल, तेल-सेन्दूर और चाकू इन्तजाम करता है। पूजा के पहले पूजा में चढ़ने वाले मुर्गे को नहला कर शुद्ध करता है। किसी-किसी गाँव में पुजार पनभरा का भी काम करता है। 


३, पनभरा - 

पनभरा का मुख्य कार्य पूजा के समय पानी का इन्तजाम करना है। वह कई घड़ों में पानी भर कर रखता है। इस पानी से खाना पकाने, पीने, बर्तन साफ करने और हाथ-पैर धोने का कार्य किया जाता है। खास कर सरहुल त्योहार के समय डाड़ी (चुवाँ) से पानी भर-भर कर सरना स्थल में लाता है। इससे साल भर के वर्षा पानी का अन्दाजा लगाया जाता है। पानी चार घड़ों में चारों दिशाओं में रखे जाते हैं। किसी-किसी गाँव में दो ही घड़े दो दिशाओं में रखे जाते हैं। 


४, सुसार - 

समाज की निगाह में ये चतुर्थ वर्ग के सेवक हैं। इनका मुख्य काम पूजा-पाठ के समय गाँव के लोगों की सेवा करना । पूजा-पाठ के बाद पहान को खाना खिलाना। पूजा स्थल में खाने के लिए पत्तल जुटाना, प्रसाद, खाना, हँड़िया-दारु, भात-दाल और तरकारियों को बाँटना, खाने के बाद लोगों को धुलाना और चूना-तम्बाकू देना है। हरियाली पूजा, सरहुल और कदलोटा के समय सुसार को विशेष काम पड़ता है । जरूरत पड़ने पर पहान उससे अन्य-अन्य काम भी कराता है।



५, पहान, पुजार, पनभरा और सुसार के चुनाव की विधि - 

पुराने पहान को बदलने के लिए तीन-तीन वर्षों में चुनाव हो, नियम के अनुसार निश्चित हैं। किसी-किसी गाँव में पहान वंशानुगत हैं। इन्हीं के वंशजों के लोग ही पहान होते हैं। धार्मिक कामों को सम्पन्न करने के लिए पहानों को गैराही खेत दिये जाते हैं। ये पहनाई खेत कहलाते हैं | पहान के रूप में काम करने वाले ही इस खेत को जोतते हैं। पहानों की बदली प्रत्येक तीन वर्षों में होती है। आवश्यकता पड़ने पर उन्हीं के वंशज के लोग नियमानुसार पहान चुने जाते हैं । जिस गाँव में तीन वर्षों में चुनाव करने की प्रथा है, वहाँ फागुन त्योहार के पहले माघ महीने में या खारा पूजा के समय चुनाव सम्पन्न किया जाता है। 


गाँव के नवयुवक धांगर गाँव में घूम-घूमकर पहान 


के चुनाव के लिए अखाड़े में एकत्रित होने का एलान करते हैं । घोषणा या सूचना के अनुसार पहान के चुनाव में भाग लेने के लिए गाँव के प्रायः सभी प्रमुख व्यक्ति युवक और बूढ़े-बुजुर्ग अखाड़े में जमा होते हैं। सभी धांगर पंक्तिबद्ध गोलाकार बैठ जाते हैं । सरना सूप रखने की जगह को बीच अखाड़े में कुँवारी भैंस के गोबर से पहनाईन लीप-पोतकर साफ और पवित्र करती है । पहान पुराने सूप, लोरहा और नये सूप तीनों को लीपी हुई जगह में रख देता है | नये सरना सूप में शुद्ध अरवा चावल, अरवा सूत, ताम्बा पैसा और तेल-सिंदूर रखे जाते हैं । पुराने सरना सूप को फाड़े हुए सखुए के लम्बे डंडे से बाँध दिया जाता है। पहान एक युवक धांगर जिसकी छाया पतली है, उसके दायें हाथ के अनामिका अँगुली में बिरनी के जड़ को बाँध देता है और दोनों आँखों को कपड़े की पट्टी से बाँधकर बन्द कर देता है ताकि वह देख नहीं सके। उन्हीं के द्वारा लोरहा का पाय चलाकर पाय चलाने वाले धांगर का चुनाव होता है। अब इसे चुने गये पाय चलाने वाले धांगर के हाथों में सरना सूप को पकड़वा दिया जाता है। इसके बाद पहान-भगवान, महादेव सरना माँ, देवी-माँ और इष्ट देवताओं के नामों का स्मरण करते हुए नये सरना सूप में रखे हुए अरवा चावलों, को पुराने सरना सूप और सूप पकड़े हुए युवक के ऊपर छींटता है। 



पहान इस समय निम्नलिखित प्रार्थना करता है- 


चाला पच्चो ने निंग्है, दवले सेवा-पूजा ननोस, निनिम आ पूना जोख़ासिन बेदय दरा आस गहि एड़प्पानू कोरअय । 


इसका अर्थ हे, सरना माँ धरती माँ जो युवक धांगर आप की सेवा-पूजा विधिपूर्वक अच्छी तरह कर सके, उसी को आप अपने से अपना सेवाइत चुन लें । आप सर्वज्ञानी हैं आप खुद चुन लें । अगर नया होने वाला पहान अखाड़े ही में मौजूद है तो पाय उसके ऊपर चढ़ जाता है। लोरहा शंकर का और सरना सूप सरना माँ-पार्वत्ती के प्रतीक हैं । पाय और युवक को आगे बढ़ाने के लिए पहान उपरोक्त वर्णित देवी-देवतओं का स्मरण करते हुए पुराने सूप, लोरहा और थांगर पर अरवा चावल को छींटता है। इस कार्य को वह तब तक जारी रखता है जब तक सरना माँ और शंकर भगवान-महादेव जी सवार नहीं होते हैं । इनके ऊपर सवार होते ही युवक के हाथ-पैर काँपने लगते हैं और सूप आगे बढ़ने लगता है । आँखों में पट्टी होने के कारण वह प्रत्यक्ष रूप से देख नहीं सकता है। उराँवों का विश्वास है कि सरना माँ और महादेव जी ही उनका पथ प्रदर्शक होते हैं। जैसे ऊपर बतलाया गया है, अगर होने वाले पहान अखाड़े ही में मौजूद है तो पाय उसी के ऊपर चढ़ जाता है और अगर वह अनुपस्थित है तो पाय उस आँख बन्द किये गये पाय चलाने वाले युवक के सहारे आगे बढ़ता है । पहान अपने सरना सूप और पुजार बटारी के साथ उसके पीछे-पीछे चलते हैं । वे जगह-जगह पर अरवा चावल और बटारी का पवित्र पानी छींटते जाते हैं । पाय आगे बढ़ते जाता है और उसी के दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो जाता है। अगर दरवाजा खुला है तो पाय घर में घुस जाता है और बन्द है तो सरना माँ और महादेव जी की शक्ति से दरवाजा अपने आप खुल जाता है । पहान और पुजार पीछे रहते हैं । उनके साथ मुख्य मुख्य दो चार लोग भी रहते हैं । पाय जिस घर में घुसता है या दरवाजे के पास रुक जाता है उस घर के अमुख व्यक्ति को ही पहान के रूप में तीन वर्षों के लिए सरना माँ और महादेव जी द्वारा ही देवी कृपा से चुना जाना समझा जाता है। 


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विवहित व्यक्ति ही पहान होता है। 


इसी बैठक या क्रम में उसी दिन पुजार, पनभरा और सुसार का भी चुनाव उपरोक्त वर्णित प्रक्रिया और विधि द्वारा होता है। ये तीनों पूजा-पाठ में पहान के सहायक होते हैं। इन पदधारियों को इनकी सेवा के लिए या धार्मिक कार्य सम्पन्न करने के लिए गैराही खेत दिये जाते हैं । ये जमीन पहनाई, डाली कतारी, पनभरा, पुजार या सुसार खेत कहलाते हैं। पहान के पास खेत कुछ ज्यादा रहता है क्योंकि सरहुल के अवसर पर इनको गाँव वालों को तीन दिनों तक खाना खिलाना पड़ता है साथ ही हरियाली पूजा और कदलोटा त्योहार के समय गाँव के पूजा में उपस्थिति लोगों को सूड़ी (प्रसादी) और खाना खिलाना है । इनके अलावे हँड़िया-दारू भी देना पड़ता है। इस प्रकार पहान, पुजार, पनभरा और सुसार का चुनाव काफी रोचक है । चुनाव सरना माँ और महादेव जी की खुशी और शक्ति पर आधारित है। चुनाव के समय गाँव के महतो (शासक) और मुख्य-मुख्य लोग पंच के रूप में रहते हैं । 

सुन्दरकाण्ड सर्ग 1 श्लोक 1-40,


































हिरण्यक शिपु वंश प्रम्परा का वर्णन


4 vedo 18 Purano sahit 14 Vidhyavo Ka Vibhajan


16 हिन्दू संस्कार की सम्पूर्ण शास्त्रीय विधि


विज्ञान परिचय


भारतीय इतिहास की प्राचीन वंशावली


श्री कल्किपुराण अध्याय १५ 
























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