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16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली महाजनपद कौन था? जनपदों का इतिहास, 16 janpado ka Itihash

16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली महाजनपद कौन था? जनपदों का इतिहास, 16 janpado ka Itihash


बौद्ध और जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचार धाराओं का विकास हुआ बौद्ध और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से 16 राज्यों का उल्लेख मिलता है हालांकि महाजनपदों के नाम की सूची इन ग्रंथों में एक समान नहीं है लेकिन भज्जी मगध कौशल गुरु पांचाल गांधार और अवंती जैसे नाम आमतौर पर मिल जाते हैं इससे यह साफ है कि इन सभी महाजनपदों का स्थान उस काल में बहुत ही महत्वपूर्ण था।


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अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था भगवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं गणों से संबंधित है बस स्टैंड की ही बातें कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे हालांकि स्रोतों के अभाव में इन राज्यों के इतिहास को पूरी तरह नहीं लिखा जाता था लेकिन तथ्य हमसे ऐसा साबित होता है कि ऐसे कई राज्य लगभग 1000 साल तक बनी रहे प्रत्येक महाजनपद की राजधानी होती थी जिसे आमतौर पर किले से घेरा जाता था कि राजधानियों के रखरखाव और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोत की आवश्यकता होती थी लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत में ब्राह्मणों ने धर्म शास्त्र नामक ग्रंथ की रचना शुरू की इसमें राजा सहित आम लोगों के लिए भी नियमों का निर्धारण किया गया और यह अपेक्षा की जाती थी कि शासक क्षत्रिय वंश सही होंगे शासकों का काम किसानों व्यापारियों और शिल्पकार वसूल करना माना जाता था इसके अलावा संपत्ति जुटाने का एक उपाय पड़ोसी राज्य पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी था धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी सेनाएं और नौकरशाही तंत्र तैयार कर लिए बाकी राज्य सहायक सेना पर निर्भर जिनकी नियुक्ति कैसे होती थी 16 महाजनपदों में प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में शक्तिशाली महाजनपद था,




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आपको बता दें कि आज का आधुनिक बिहार मगध कहलाता था आधुनिक इतिहास का इसके कई कारण बताते हैं इसका एक कारण यह है कि नगर क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी दूसरा कारण यह बताया जाता है कि यहां पर लोहे और अन्य खनिज पदार्थों के स्रोत भी उपलब्ध है जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था साथ ही गंगा और उसकी उप नदियों से यात्रा करना सस्ता व सुलभ होता था लेकिन अमित जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारण विभिन्न शासकों की नीतियों को बताया है इन लेखकों के अनुसार बिंबिसार अजातशत्रु और महापद्मनंद जैसे प्रसिद्ध राजा अत्यंत महत्वाकांक्षी शासन और उनके मंत्री उनकी नीतियां लागू करते थे प्रारंभ में मगध की राजधानी थी राही आधुनिक नाम राजगीर है जो बिहार में स्थित है रोचक बात है कि एक शब्द का अर्थ है राजाओं का घर पहाड़ियों के बीच शताब्दी ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया जिसे अपना कहा जाता है यहां पर गंगा नदी को आने-जाने के मार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य का शासन पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला हुआ था उनके पुत्र अशोक ने जिन्हें आरंभिक भारत का प्रसिद्ध शासक माना जा सकता है कलिंग पर विजय प्राप्त की थी कि आज का उड़ीसा कहलाता है इतिहास की रचना के लिए इतिहासकारों ने विभिन्न प्रकार के स्रोतों का उपयोग किया था पुरातात्विक प्रमाण भी शामिल है विशेषता मूर्तिकला मौर्य कालीन इतिहास के पुनर्निर्माण हेतु समकालीन हुई है मौर्य के दरबार में यूनानी राजदूत मेगास्थनीज द्वारा लिखा गया वर्तमान समय में उपलब्ध है जिसका उपयोग आमतौर पर किया जाता है वह है।




अर्थशास्त्र के कुछ भागों की रचना की थी जो चंद्रगुप्त के मंत्री थे साथ ही मौर्य शासकों का उल्लेख बौद्ध और पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है सभी साथी बड़े उपयोगी है लेकिन पत्थर और स्तंभों पर मिले अशोक के अभिलेख सबसे मूल्यवान चौथ माने जाते हैं अशोक वह पहला सम्राट था जिसमें अपने अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा शिलालेख लिखवाया।


Magadh Rajay ka itihash 


अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से धर्म का प्रचार किया इनमें बड़ों के प्रति आदर सन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता सेवकों और दातों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरों के धर्म और परंपराओं का आदर करना भी शामिल था मौर्य साम्राज्य के पांच प्रमुख राजनैतिक केंद्रित है राजधानी पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र तक्षशिला उज्जैनी तो असली और शुभम गिरी इन सभी का उल्लेख अशोक के अभिलेखों में किया गया है अगर हमें अभिलेखों का परीक्षण करें तो पता चलता है कि आधुनिक पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत से लेकर आंध्र प्रदेश उड़ीसा और उत्तराखंड तक हर स्थान पर एक जैसे ही संदेश को खेले गए थे इतने विशाल साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था समान रही होगी इतिहासकार अब इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं ऐसा संभव नहीं था साम्राज्य में शामिल क्षेत्र बड़े विभिन्न और भिन्न भिन्न प्रकार के थे अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र और कहां ओडिशा के तटवर्ती क्षेत्र यह संभव है कि सबसे प्रबल प्रशासनिक नियंत्रण साम्राज्य की राजधानी तथा उसके आसपास के प्रांतीय केंद्रों का चयन बड़े ध्यान से किया गया था और दोनों लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों पर केंद्रित है जबकि कर्नाटक में सोने की खदान के लिए उपयोगी का संचालन के लिए भूमि और नदियों दोनों मार्गों से आवागमन बना रहना अत्यंत आवश्यक वस्तुओं में सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति और उप समितियों का उल्लेख किया है।




इनमें से एक काम नौसेना का संचालन करना था तो दूसरी यातायात और खानपान का संचालन करती थी इसी का काम पैदल सैनिकों का संचालन चौथी का पांचवी का काम हाथियों का संचालन करना था दूसरी उप समिति का दायित्व था उपकरणों को ढूंढने के लिए बैल गाड़ियों की व्यवस्था सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए और कारों की नियुक्ति करना हमारा लेख कैसा लगा? धन्यवाद 


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